दशामाता व्रत कथा 3

दशामाता व्रत कथा 3

दशामाता व्रत कथा 3

दशामाता व्रत कथा 3

एक सास बहु थी | एक दिन सुबह-सुबह सास ने बहु से कहा की -‘ जाओ आग लाकर भोजन बनाओ | बड़ी भूख लगी है |’ बहु हाथ में कंडी लेकर आग लेने गांव मैं गई | उस दिन गांव भर मैं दशामाता की पूजा थी | इसलिए किसी के यहाँ से भी उसे आग नहीं मिली | वह खाली हाथ लौटकर आयी |

सायं होने पर वह पड़ोसन के पास जाकर बोली की -‘ मेरी सास तो दशामाता का डोरा नहीं लेती | परन्तु अब की बार मैं डोरा लेना चाहती हु | मुझे पूजन की विधि भी बता देना |’ दोबारा जब डोरा लेने का समय आया तो बहु ने सास को बिना बताये दशामाता का डोरा ले लिया | नो दिन वह किसी न किसी बहाने पड़ोसन के घर जाकर कथा सुनते रही | दसवे दिन उसे चिंता सताने लगी की अब मैं पूजा कैसे करुँगी | वह मन ही मन दशामाता का ध्यान धरकर सोचने लगी की आज सास कहि बाहर चली जाये तो मैं शांति पूर्वक पूजा कर लू |

दशामाता की कृपा से सास बहु से बोली -‘ मैं आज खेतो मैं जा रही हु | यदि मुझे आने मैं देर हो जाये तो तुम मेरे लिए खेत पर खाना ले आना |’ बहु के मन की मुराद पूरी हो गयी | वह तो यही चाहती ही थी | उसने सास से कहा की -‘ आप निश्चिन्त होकर जाइये | घर का सारा काम मैं निपटा लुंगी |’

सास के जाते ही बहु ने स्नान कर दशामाता की पूजा की | इसके बाद वह पूजा की सामग्री मिटटी के गोले मैं रखकर उसे सिलाने के लिए ले जाने लगी थी की उसकी सास खेतो से वापस आ गयी | सास को देखकर बहु ने जल्दी से उस गोले को मटकी मैं छिप्पा दिया | उसने सोचा की उचित समय पर गोले को दही से निकाल कर विसर्जित कर आउंगी |

सास ने आतें ही बहु से कहा -‘ तुम मुझे खाना देने क्यों नहीं आयी ? अब तक क्या कर रही थी ? ‘ बहु ने कहा की – ‘ आज मैंने सर के बाल धोये थे | उनके सूखने मैं देर लग गयी | इस कारण भोजन बनाने मैं देर हो गयी | मैं थाली लगाती हु आप घुस त्याग कर भोजन कीजिये |’

सास का गुस्सा कुछ ठंडा हुआ | वह पैर धोकर चौके पर मैं बैठी ही थी की उसका बेटा भी आ गया |वह भी माता के साथ भोजन करने बैठ गया | सास भोजन करके उठना ही चाहती थी की उसका बेटा बोला -‘ मुझे तो दही चाहिए |’ सास ने बहु से दही देने के लिए कहा | बहु बोली -‘ मैं तो रसोई मैं हु | आप ही इन्हें दही दे दे |’

सास हाथ धोकर दही लेने गयी | परन्तु जैसे ही उसने छाछ की मटकी उठाई तो उसमे कुछ खड़खड़ाने की आवाज आई | उसने हाथ डाल कर देखा तो उसे एक बड़ा सोने का गोल मिला | सास ने आश्चर्य से बहु से पूछा -‘इस छाछ की मटकी मैं यह सोने का गोल कहा से आया ?’ इसे तुम कहा से चुरा कर लायी हो ? यहाँ क्यों छिपाकर रखा है ? मैं समझ गयी की इसी वजह से तुम छाछ देने नहीं उठी | इसका भेद बताओ |’

बहु बोली -‘मुझे कुछ नहीं पता | मेरी दशामाता जाने | मैंने आपको बताये बिना दशामाता का डोरा लिया था  और उनकी पूजा की थी | आप के आ जाने के कारण मैं डोरे को विसर्जित करने नहीं जा सकी | आपके डर से मैंने इसे छाछ की मटकी मैं छिप्पा दिया था | दशामाता ने इसे सोने का बना दिया | मैं इसमें क्या कर सकती हु ? ‘

सास ने बहु को गले लगा लिया और कहा -‘ अब मैं भी तुम्हारे साथ डोरा लुंगी और विधिवत व्रत और पूजा किया करूँगी |’

है दशामाता ! जैसे तुमने इनको दिया , वैसे ही सब भक्तो पर कृपा करना |

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